Bhairava Upasana By Pt Y N Jha Tufan Amit Pocket Books, Jalandhar free books download in Hindi

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Bhairava Upasana By Pt Y N Jha Tufan Amit Pocket Books, Jalandhar free books download in Hindi

Bhairava Upasana By Pt Y N Jha Tufan Amit Pocket Books, Jalandhar free books download in Hindi
Bhairava Upasana By Pt Y N Jha Tufan Amit Pocket Books, Jalandhar free books download in Hindi

Book detail

Book NameBhairava Upasana By Pt Y N Jha Tufan Amit Pocket Books, Jalandhar free books download in Hindi
AuthorPt Y N Jha Tufan
CategoryTantra mantra and Spiritual
LanguageHindi
Page148
QualityHD
Size59.2 MB
Download StatusAvailable for Download

भगवान भैरव की जन्म तिथि

भगवान् शिव के “पाँचवें अवतार” माने जाने वाले ” भगवान भैरव” ” काशी के कोतवाल” प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि काशी में जिन साधकों का शरीर त्याग होता है, उन्हें चे “मोक्ष” देते हैं। वैसे तो भगवान भैरव के असंख्य अवतार हुएं हैं, परन्तु चटुक भैरव अवतार में श्री ब्रह्म जी का पांचवां मुख अपने नखाग्र से काटने के प्रायश्चित करने के पश्चात् भगवान शिव ने अपने पांचवें अवतार रूप भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त किए थे।

शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि उपरोक्त अवतार “मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी” को हुआ माना जाता है। इस तिथि पर भगवान भैरव का जन्मोत्सव मनाते हुए व्रत रखना, उनका पूजन और गुणगान करना बहुत पुण्य फल प्राप्त करता है। यह दिन सभी पापों की विशेषकर “ब्रह्म हत्या की” निवृत्ति के लिए अत्यन्त शुभ एवं कल्याणकारी है। इस आविर्भाव दिवस के अतिरिक्त भी, प्रत्येक मास की ” अष्टमी” अथवा ” चतुर्दशी” भी भैरव पूजन के लिए उपयुक्त है। वारों में रविवार और मंगलवार मुख्य हैं।

किन्तु भैरवोपासना के लिए काशी तीर्थ सब प्रकार की सिद्धि देने वाला है। जो उपासक निरन्तर काशीबास नहीं कर सकते, वे उपासना का आरम्भ काशी में करके, बाद में अन्य उपयुक्त स्थान पर निवास करके सिद्धि साधना सम्पन्न करें, मैंने भी ऐसा ही किया था। भारत वर्ष में अनेक स्थानों, नगरों, ग्रामों आदि में भैरव पीठ अथवा भैरव मंदिर विद्यमान है, वहां भी साधना की जा सकती है।

भैरव उपासना में विधि पूर्वक पूजन, मंत्रादि का जप आदि करना चाहिए। उनके लिए अपेक्षित भोग, [प्रसाद, भोज्य वस्तु] पानादि की व्यवस्था भी की जाती है। इस साधना में “दीप-दान” का भी अत्यधिक महत्व है। साधना में अशुद्धि और प्रमाद सर्वधा वर्जित है। साधकों को चाहिए कि ये मन्त्र यन्त्र-तंत्र आदि का ज्ञान सर्वप्रथम-भैरव साधना प्राप्त किए हुए किसी “सिद्ध गुरू” से प्राप्त कर लें, तभी साधना आरम्भ करें। इसके लिए सिद्ध तांत्रिक वाई. एन. झा. (लेखक] के कार्यालय ‘से भी सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं।

“Though no one can go back and make a brand new start, anyone can start from now and make a brand new ending.” – Carl Bard

Leave a Comment