Bhairava Tantra Rahasya Aur Bhishana Bhairava Shabara By Yogi Raj Yashpal Ranadhir Prakashan, Haridwar free books download in Hindi

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Bhairava Tantra Rahasya Aur Bhishana Bhairava Shabara By Yogi Raj Yashpal Ranadhir Prakashan, Haridwar free books download in Hindi

Bhairava Tantra Rahasya Aur Bhishana Bhairava Shabara By Yogi Raj Yashpal Ranadhir Prakashan, Haridwar free books download in Hindi
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Book detail

Book NameBhairava Tantra Rahasya Aur Bhishana Bhairava Shabara By Yogi Raj Yashpal Ranadhir Prakashan, Haridwar free books download in Hindi
AuthorYogi Raj Yashpal
CategoryTantra mantra and Spiritual
LanguageHindi
Page266
QualityHD
Size95.5 MB
Download StatusAvailable for Download

भैरव साधना रहस्य

भैरव साधना के बारे में लोगों के मन में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार की साधना को कोई भी साधक कर सकता है। भैरव साधना के सम्बन्ध में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिए-

१. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः शुभ कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।

२. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।

३. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।

४. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदि का नैवेद्य भी लगाते हैं।

देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भाँति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने के कारण ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत उनीदुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप सर्व समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं।

साधना के लिए आवश्यकता

ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी भी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।

१. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य (प्रसाद) को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।

२. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप अगरबत्ती जलाई जाती है।

३. इस महत्त्वपूर्ण साधना हेतु ‘चित्र’ आवश्यक है, भैरव चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए।

४. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीक माला’ का ही प्रयोग किया जाता है।

पूजन के पश्चात्पू जन की तैयारी पूरी होने पर भैरव का आवाहन बताए गए मन्त्र से उच्चारण करें और भैरवाय नमः बोलते हुए चन्दन, अक्षत, फूल, सुपारी, दक्षिणा, नैवेद्य आदि के साथ धूप और दीप से आरती करें। मन्त्र है- आयाहि भगवान् रुद्रो भैरवः भैरवीपते, प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि ।

भैरव के आवाहन के बाद काल भैरव की उपासना करते हुए दिए गए शाबर मन्त्र का जाप करें। मन्त्र है- जय काली कंकाली महाकाली के पूत काल भैरव, हुक्म है- हाजिर रहे, मेरा कहा काज तुरन्त करे, काला-भैरव किल-किल करके चली आई सवारी, इसी पलइसी घड़ी यहीं भगत रूके, ना रूके तो, तो दुहाई काली माई की, दुहाई कामरू कामाक्षा की, गुरु गोरखनाथ बाबा की आण छु वाचापुरी !!

भैरव साधना को किसी भी रविवार, मंगलवार या कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आरम्भ किया जा सकता है। परिधान लाल वस्त्र का होना चाहिए।

साधना की शुरुआत करने से पहले अपने आसन के ठीक सामने भैरव का चित्र या मूर्ति को स्थापित किया जाना चाहिए। इनकी पूजा तेल का दीपक जलाकर की जाती है। इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जा सकती है।

विभिन्न उपायों के कुछ मन्त्र बहुत उपयोगी होते हैं, जिनका तुरन्त लाभ मिलता है। इन्हीं में से एक भय नाशक मन्त्र इस प्रकार है – ॐ भं भैरवाय आपदुद्धारणाय भयं हन् ! इस मंत्र का दक्षिण दिशा की ओर मुख कर के छह माला जाप करना चाहिए। इससे तुरन्त लाभ मिलता है।

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