असली प्राचीन रावण संहिता रुपेश हिंदी बुक पीडीऍफ़ Asli Prachin Ravan Sanhita by Rupesh Hindi PDF Book Free Download

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असली प्राचीन रावण संहिता रुपेश हिंदी बुक पीडीऍफ़ Asli Prachin Ravan Sanhita by Rupesh Hindi PDF Book Free Download

असली प्राचीन रावण संहिता रुपेश हिंदी बुक पीडीऍफ़ Asli Prachin Ravan Sanhita by Rupesh Hindi PDF Book Free Download

Books detail / बुक्स डिटेल्स

Book Nameअसली प्राचीन रावण संहिता रुपेश हिंदी बुक पीडीऍफ़ Asli Prachin Ravan Sanhita by Rupesh Hindi PDF Book Free Download
Author NameRupesh
Category Tantra mantra and Occult
LanguageHindi
Page365 65 Page each total 5 Parts
QualityHQ
Size100 MB / 20 MB Each
Download StatusAvailable for Download

भूत-प्रेत हटाने हेतु शक्तिशाली यन्त्र व मन्त्र

रवि, पुष्य, रवि मूल नक्षत्र अथवा किसी शुभ मुहूर्त में नीचे दिये यन्त्र को अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम द्वारा बनाएं और चांदी के तावीज में बंद ॐ ह्रीं असि आउ सा सर्व दुष्टान् स्तम्भय स्तम्भय मोहय मोहय जंभय जंभय अंघय अंघय वधिरय वधिरय मूकवत् कारय कारय कुरु कुरु ह्रीं दुष्टान्

करके, १२५०० बार मन्त्र का जप करें। फिर तावीज को काले डोरे की सहायता से दाएं बाजू पर धारण कर लें। यदि शत्रु आक्रमण करने आए तो तावीज पर बायां हाथ रखकर उपर्युक्त मन्त्र को पढ़ना प्रारंभ कर दें। शत्रु भाग खड़ा होगा अथवा पराजित हो जाएगा। किसी के भूत, पिशाच, प्रेत व चुड़ैल की छाया पड़ी हो, तो तावीज को दाएं हाथ की मुट्ठी में बंद करके, मन्त्र जप करें और तावीज से झाड़ा दे दें, भूतादि का उपद्रव शांत हो जाएगा। यन्त्र को बाजू पर बांधकर और मन्त्र-जप करके किसी यात्रा पर जाएंगे, तो मार्ग में किसी प्रकार की कोई दुर्घटना नहीं होती है।

भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी निवारण यन्त्र

इस यन्त्र को आंकडां नामक पौधे के हरे पत्ते पर गोरोचन, हरताल, हिंगुल और मैनसिल के मिश्रण से लकड़ी की कलम द्वारा लिखा जाता है। यन्त्र लिखने के बाद दीप और धूप जलाकर इसकी पूजा करें और फिर पत्ते को लपेटकर कलावे अथवा कच्चे सूत की डोरी से गले, भुजा अथवा कमर से बांध दें। कितना भी शक्तिशाली भूत हो इस यन्त्र के प्रभाव से स्वयं छोड़कर भाग जाता है।

भूतादि दुष्ट आत्माओं के निवारण के मन्त्र

ऐ सरसो पीला सफेद और काला। तू चलना-फिरना भाई-सा चाला।। तोहरे बाण से गगन फट जाय। ईश्वर महादेव के जटा कटाय ।। डाकिया, योगिनी व भूतपिशाच। काला, पीला, श्वेत, सुसांच।। सब मार-काट करूं खेत खरिहान। तेरे नजर से भागे भूत लै जान।। आदेश देवी कामरू कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि दासी चण्डी दोहाई।।

थोड़ी-सी सरसों लेकर उपर्युक्त मन्त्र का ३ बार उच्चारण करके भूत-बाध से ग्रस्त रोगी पर फूंकें और उसमें से थोड़ी-सी बचाकर अग्नि में डाल दें।

ओं नमो भसाणं वरसिने भूत-प्रेतनां पलायनं कुरु कुरु स्वाहा।

इस मन्त्र का प्रयोग करने से पहले इसकी सिद्धि आवश्यक है। सिद्धि प्राप्प करने के लिए इसका १००० जप करना चाहिए। उसके बाद ही इसके प्रयोग का अधिकार प्राप्त होता है। भूत-ग्रस्त रोगी को ७ बार झाड़ना चाहिए।

जीरा जीरा महाजीरा जिरिया चलाय! जिरिया की शक्ति से फलानी चलि जाय।। जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे जीरा मन्त्र से अमुख अंग भूत चले।। जाय हुक्म पाडुआ पीर की दोहाई।।

ऊपर्युक्त मन्त्र से थोड़ा-सा जीरा ७ बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बिठाना चाहिए कि उसका धुआं उसके मुख के सामने लगे। इस प्रयोग से भूत-वाधा की निवृत्ति होगी। भूत सबको भई काहे आमन्द अपार। जिसको गुमान से अमुको को भार।। हमरे संइको पऊं करो सलाम हजार। जाते होय भूत आवेश किनार।। जितनी मेथी छोर बड़े और आदि से अन्त। तिसके घूम ग्रन्थ ते जल में भूत भगते।। अमुक अंग भूत नहीं, यह मेथो के लाय। उठी के आगे रत क्षण में जाय पराय।। आलेश देवी कामरू कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि दासी चण्डी की

दोहाई।।

थोड़ी-सी मेथी को ७ वार अभिमंत्रित करके रोगीके शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बिठाना चाहिए कि उसका धुआं उसके मुख के सामने लगे। इस प्रयोग से भूत-बाधा की निवृत्ति होती है।

तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंग से भूत। मारूं घुलावन कृष्ण वर पूत। आज्ञा कामरू कामाख्या

हारि दासी चण्डी दोहाई।

एक मुट्ठी भर धूल लेकर उसे ३ बार अभिमंत्रित करें और भूत-बाधा ग्रस्त रोगी पर फेंकें। इससे भूत-बाधा की निवृत्ति होती है।

ओं नमः आदेश गुरु को हनुमंत बीर बीर बजरंगी वज्र धार डाकिनी शाकिनी भूत प्रेत जिन्न सबको अब मार मार, न मारे तो निरंजनि निराकर की दोहाई।

इस मन्त्र के प्रयोग से पहले हनुमान्जी की पूजा-उपासना करना आवश्यक होता है। इसका शुभारम्भ शनिवार से करना चाहिए। निरन्तर २१ दिन तक श्रद्धापूर्वक पूजा, उपासना व २२१ मन्त्र नित्यप्रति जप करने के पश्चात् किसी चौराहे की कंकड़ी लें, उस कंकड़ी और उड़द को ७ बार अभिमंत्रित करके रोगी को झाड़ा दें।

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