Shodashi Tantra Sastra Rajesh Dixit by Shubhada Choudhury PDF Book Free Download

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Book detail

Book NameShodashi Tantra Sastra Rajesh Dixit by Shubhada Choudhury PDF Book Free Download
AuthorRajesh Dixit
CategoryTantra mantra and Spiritual
LanguageHindi
Page229
QualityHD
Size55.8 MB
Download StatusAvailable for Download

श्री यन्त्र के चको का रहस्य

श्री यन्त्र के पूर्वोक्त ६ चक्रों का रहस्य यथाक्रम निम्नानुसार है –

। प्रथम चक्र का केन्द्रस्थ विन्दु’ भगवती त्रिपुर सुन्दर अथवा ललिता का रूप है। यह विन्दु नाद तया बिन्दु के तीन विन्दुओं के संयोग से बना है।

भगवती के चारों अस्त्र राग, द्वेष, मन तथा पञ्चतन्मात्रायों के स्रोतक हैं। इन्ही बन्धनों के द्वारा देवी निराकार सदाशिव को साकार लीला में प्रयुक्त करती है।

तन्त्रों में सुधासिन्धु तथा उसमें स्थित मणिद्वीप का बार-बार उल्लेख आता है। इसी मणिद्वीप में संयुक्त शक्ति-शिव निवास करते हैं। यही मणिद्वीक इस ‘बिन्दु’ द्वारा प्रदर्शित किया गया है। मनुष्यों में इसी को (हुत्पुण्डरीक) (हृदय-कमल) कहते हैं।

प्रथम चक्र की अधिष्ठात्री ललिता अथवा महात्रिपुर सुन्दरी अपनो आवरण देव ।।ओं के भेद से कहीं तो षोडश नित्याओं में मुख्य मानी गई हैं, कहीं अष्ट मातृकाओं में सर्वश्रेष्ठ कही गई है तथा कहीं अष्ट वशिनी देवताओं को अधिनायिका के रूप में उल्लिखित हैं। ये भेद प्ररतार-भेद से हुए हैं तथा ययाक्रम इन तीनों प्रस्तारों के नाम मेस, कैलाश तथा भूः प्रस्तार हैं। यही श्री यन्त्र की उपासना के मुल्य प्रकार भी हैं।

२. यह चक्र एक त्रिकोण’ वाला है। इस त्रिकोण के तीनों कोण कामरूप, पूर्णगिरि तथा जालन्धर पीठ हैं। इनके मध्य में ‘ओड्‌याण पोठ’ है। पूर्वोक्त तोनों पीडों को अधिष्ठात्री देवता कामेश्वरी, वज्रेश्वरी तथा भगमालिनी हैं। ये प्रकृति, महत् तथा अह कार रूपा है।

३. इस चक्र के ‘अष्टार’ (आठ त्रिकोणों) की अधिष्ठात्री देवता (१) वणिनी, (२) कामेश्वरी, (३) मोहिनी, (४) विमला, (५) अरुणा, (६) जयिनी, (७) सर्वे- श्वरो तया (८) कोलिनी क्रमशः शीत, उष्ण, सुख, दुख, इच्छा, सत्व, रज तथा तम की स्वामिनी है। इस चक्र का साधक गुणों पर अधिकार करने एवं द्वन्द्वातीत होने में समर्थ होता है।

४ इस चक्र के ‘अन्तर्दशार’ (दस त्रिकोणों) को शक्तियाँ (१) सर्वज्ञा, (२) सर्वशक्तिप्रदा, (३) सर्वेश्वयंप्रदा, (४) सर्वज्ञानमयी, (५) सर्वव्याधिना शिनी, (६) सर्वाधारा, (७) सर्वरापहारा, (८) सर्वानन्दमयी, (६) सर्वरक्षा तथा (१०) सर्वेप्सित फलप्रदा है. जो क्रमशः रेचक, याचक, शोषक, दाहक, प्लावक, क्षारक, उद्धारक, क्षोपक, जुम्भक तथा मोहक बहिनकलाओं की अधिष्ठात्री है।

५. इस चक्र के ‘बहिर्दशार’ के दरा विक्रोणों की दस अधिष्ठात्री देवता दस प्राणों की स्वामिनी हैं। इनके नाम है (१) सर्व सिद्धिप्रदा, (२) सर्व सम्प हयदा, (३) सर्वप्रियङ्करी, (४) सर्वमङ्गलकारिणी, (५) सर्वकामप्रदा, (६) सर्वदुःख विमोचिनी, (७) सर्वमृत्युप्रणमनी, (८) सर्वविघ्न निवारिणी, (६) सर्वाङ्गसुन्दरी और (१०) सर्वसौभाग्य दायिनी ।

६. इस चक्र के ‘चतुर्दशार’ के चौदह त्रिकोण चौदह मुख्य नाड़ियों के योनक हैं। इन नाड़ियों के नाम हैं (१) अलम्बुसा, (२) कुड्डु, (३) विश्वोदरी, (४) वारणा, (५) हस्ति जिह्वा, (६) यशोवती, (७) पर्वास्वनी, (८) गान्धारी, (६) तूपा. (१०) मंखिनी, (११) सरस्वती, (१२) दूडा (१३) पिङ्गला 

इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे.

You have to dream before your dreams can come true. – Dr. APJ Abdul Kalam

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