Saubhagya Lakshmi Tantra Pradip Kumar Roy by Kanti Bhargava PDF Book Free Download

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Saubhagya Lakshmi Tantra Pradip Kumar Roy by Kanti Bhargava PDF Book Free Download

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Book detail

Book NameSaubhagya Lakshmi Tantra Pradip Kumar Roy by Kanti Bhargava PDF Book Free Download
AuthorKanti Bhargava
CategoryTantra mantra and Spiritual
LanguageHindi
Page158
QualityHD
Size31.4 MB
Download StatusAvailable for Download

लक्ष्मी मे चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः । नारायणी शीर्षदेशे सर्वाङ्ग श्रीस्वरूपिणी ॥1॥

रामपत्नी तु प्रत्यङ्गे रामेश्वरी सदाऽवतु । विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी तथा ॥2॥

जयदात्री धनदात्री पाशाक्ष-मालिनी शुभा। हरिप्रिया हरिरामा जयङ्करी महोदरी ॥3॥

कृष्णपरायणा देवी श्रीकृष्ण मनोमोहिनी । जयङ्करी महारौद्री सिद्धिदात्री शुभङ्करी ॥4॥

सुखदा मोक्षदा देवी भयं हरतु भक्तानां चित्रकूट-निवासिनी । भववन्धं विमुञ्चतु ॥5॥ कवचं तन्महापुण्यं यः पठेद् त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा मुच्यते भक्तिसंयुतः । सर्वसङ्कटात् ।।6।।

लक्ष्मीकवच

लक्ष्मी मेरे अग्र भाग की रक्षा करें, कमला मेरे पृष्ठ देश की रक्षा करें । मस्तक भाग में नारायणी एवं श्रीस्वरूपिणी देवी मेरे समस्त अंगों की रक्षा करें ।।1।।

रामपत्नी रामेश्वरी मेरे प्रत्यङ्ग (उपाङ्ग) की सर्वदा रक्षा करें। विशालाक्षी, योगमाया, कौमारी, चक्रिणी, जयदात्री, धनदात्री, शुभा, पाशाक्षमालिनी, हरिप्रिया, हरिरामा, जयङ्करी, महोदरी, कृपा-परायण देवी, कृष्ण-मनोमोहिनी, जयङ्करी, महारौद्री, सिद्धिदात्री, शुभङ्करी, सुखदा, मोक्षदा, चित्रकूट निवासिनी देवी- ये भक्तों के भय का हरण करें एवं संसार-वन्धन का मोचन करें 112-511

जो व्यक्ति भययुक्त होकर इस महापुण्यजनक कवच को तीन सन्ध्याओं में या एक सन्ध्या में पाठ करता है, वह समस्त संकट (विपद्) से मुक्त हो जाता

समय अपने आप में कुछ नहीं होता, समय को खुशहाल बनाने के लिए हमें कुछ करना होता है।

“Time is nothing by itself, in order to make the best use of time, we have to do something with it”

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