Shri Netra Tantra Acharya Radheshyam Chaturvedi by javanesegraviton PDF Book free Download

Book detail
Book Name | Shri Netra Tantra Acharya Radheshyam Chaturvedi by javanesegraviton PDF Book free Download |
Author | javanesegraviton |
Category | Tantra mantra and Spiritual |
Language | Hindi |
Page | 608 |
Quality | HD |
Size | 85.5 MB |
Download Status | Available for Download |
आगमशास्व में ‘पिण्डब्रह्माण्ड-सिद्धान्त की मान्यता है। इसका तात्पर्य यह है कि जो कुछ ब्रह्माण्ड में है वह सब इस पिण्ड अर्थात् शरीर में है। थोड़ा गम्भीर विचार करने पर प्रतीत होता है कि केवल ब्रह्माण्ड ही नहीं उससे आगे के भी तत्त्व इस मानव देह में वर्तमान है।
अनादि काल से अज्ञानावृत अत एव मलिन यह जीव चैतन्य इस शरीर की महत्ता से अपरिचित होने के कारण इसे मात्र अस्थि मांस आदि का निचय मानता है और इसके साथ दूध और पानी की भाँति तादात्म्य स्थापित किये हुए है।
यह शरीर जड़ और चेतन दोनों का सद्धात है और ये दोनों तत्त्व इसमें परस्पर तादात्म्य स्थापित किये हुए हैं। जब तक इन दोनों का पार्थक्य नहीं होता और जीव या अणु का बद्ध शिव अपने स्वभाव रूप पूर्ण अहन्ता में स्थित नहीं होता तब तक उसे पूर्ण मुक्त नहीं कहा जा सकता।
यह ध्यान रखना चाहिये कि मुक्ति की यह अवस्था अकस्मात् नहीं उपलब्ध होती; इसकी प्राप्ति में क्रम होता है। यह उपलब्धि एक काल या एक जन्म की नहीं घरन् अनेक जन्मों के प्रयास की होती है-
प्रयास करने के बाद भी अगली व्यवहार प्रयास करनी होती है।
Even after making an effort, the following behaviour should be shown is making an effort.