Tantra Dwara Manokamana Siddhi With Yakshini Sadhana By Pt Brigunath Mishra Ranadhir Prakashan, Haridwar by Ranadhir Prakashan, Haridwar free PDF book Download
Book detail
Book Name | Tantra Dwara Manokamana Siddhi With Yakshini Sadhana By Pt Brigunath Mishra Ranadhir Prakashan, Haridwar by Ranadhir Prakashan, Haridwar free PDF book Download |
Author | Pt Brigunath Mishra Ranadhir Prakashan |
Category | Tantra mantra and Spiritual |
Language | Hindi |
Page | 196 |
Quality | HD |
Size | 51.4 MB |
Download Status | Available for Download |
कर्ण पिशाचिनी सिद्धि
यह सिद्धि वाममार्गी है यद्यपि यह देवी साधकों को धन, सम्पत्ति देती है परन्तु इसके साधक की गति अच्छी नहीं होती। अन्तिम क्षण इसका बड़ा दुःख में बीतता है।
वैसे इसकी साधना किसी भी माह की त्रयोदशी से प्रारम्भ की जाती है, तथा अमावस्या को समाप्त होती है। त्रयोदशी की रात्रि ११ बजे से सूर्योदय पूर्व तक नित्य ५१ माला जप करने का विधान है। ५४ मनके की माला पर जप किया जाता है। वह भी माला हड्डी की होनी चाहिये। एक ५४ मनके की हड्डी की माला अपनी गर्दन में पहने रहना होता है।
त्रयोदशी के दस दिन पूर्व से ही स्नान करना, मुँह धोना, कपड़ा बदलना छोड़ देना होता है। अपने घर के किसी एक कमरे में जिसमें कुछ भी सामान न हो, किया जा सकता है। इस बीच मूत्रपान तथा मलपान अपना ही कुछ न कुछ करना होता है।
खाना खाकर बर्तन मलना या मुँह धोना मना है। यानि अपवित्र रूप में रहना होगा। इस बीच देवी देवताओं की पूजा सन्ध्या आदि सभी कर्मों को त्यागना हेता है। जप प्रारम्भ होते ही कर्ण पिशाचिनी साधक के पास २०-२५ वर्ष की युवती के रूप में आकर साधक के अंग से कामक्रीड़ा करने लगती है।
बिल्कुल निर्वस्त्र रूप में साधना करनी होती है। कर्णपिशाचिनी भी नग्नावस्था में ही साधक के पास आकर उसके लिंग का चुम्बन, मल-मूत्र देह से लगाना साधक के साथ सम्भोग करना आदि काम करती है तथा रात्रि के अन्तिम प्रहर में गायब हो जाती है।
अपने चारों तरफ दीपक जलाकर साधक इसकी सिद्धि करता है। साधना की तीनों रात्रि में देवी स्त्री के रूप में आकर रहती है।
अमावस्या की रात्रि में साधक को उसका कार्य करते रहने का वचन देती है तथा साधक को अन्य स्त्रियाँ यहाँ तक कि अपनी पत्नी से भी सम्पर्क करने को मना कर जाती है। जब भी उसे काम क्रीड़ा की भूख होगी साधक के पास आ जाया करती है।
साधना पूरी होने पर देवी साधक को बीती हुई बातें कान में आकर कह देती है। जो एक चमत्कारी आकर्षण का कार्य होता है। लोग प्रभावित होकर साधक को मनमाना रुपया देते हैं। अतः यह साधक के पास धन का बाहुल्य करा देती है।
अमावस्या के बाद भी दस दिनों तक कोई क्रिया कर्म पूजा नहीं करनी चाहिये। मन्त्र इस प्रकार है।
ओं ह्रीं कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनी मम कर्णे अवतर अवतर सत्यं कथय कथय अतीत अनागत वर्तमान दर्शय दर्शय ऐं ह्रीं ह्रीं कमर्णपिशाचिनी स्वाहा।
इस देवी की सिद्धि से साधक की पत्नी जीवित नहीं रह पाती। परन्तु इसकी सिद्धि से समान-मर्यादा, धन-यश की प्राप्ति होती है। यह देवी साधक के कान में बीती हुई बातें तथा वर्तमान की बातें बतला देती है। अतः यह चमत्कार दिखाने वाली देवी है।
“Real change, enduring change, happens one step at a time.”